कुछ साथियों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि यदि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली किसी गतिविधि के विरोध में वे आवाज उठाना चाहें तो क्या करना होगा ? इस संबंध में कुछ उपयोगी जानकारी जुटाने का प्रयास कर रहा हूं और शीघ्र ही इस बारे में आपको एक सूचनात्मक लेख पढ़ने का अवसर मिलेगा. मेरा अनुरोध सिर्फ इतना है कि जीवों के खिलाफ अत्याचार और प्रकृति से छेड़छाड़ के प्रति 'मुझे क्या लेना देना' या 'मैं क्या कर सकता हूं'... ऐसे रवैये को छोड़ने और विरोध में आवाज उठाने का प्रयास हर व्यक्ति को करना चाहिए.
यह सोचने से कुछ नहीं होगा कि भला अकेला मैं क्या कर सकता हूं. चंडी प्रसाद भट्ट हों या चिको मेंडिस, पहला विरोध का स्वर उन्होंने अकेले ही बुलंद किया था. बाद में तो स्वयंमेव लोग जुड़ते चले गए. मैं जानता हूं कि हममें से कई व्यक्ति कुछ कहना चाहते हैं, करना भी चाहते हैं लेकिन अकेले होने के कारण पहल का साहस नहीं जुटा पाते. बात सिर्फ इतनी है कि अपनी सोई हुई अंतरात्मा को जाग्रत करना है. उसकी आवाज को सुनना है और उसे बुलंद करना है. अकेले पहला कदम उठा कर देखिए खुद-ब-खुद साथियों का कारवां जुटता चला जाएगा. कोई संगठन बनाने या आंदोलन चलाने की आवश्यकता नहीं है. बस जाग्रत रहना है और अपनी अंतरातमा की आवाज बुलंद करना है.
बकौल दुष्यंत
कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो.
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