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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

बाघों को असली खतरा अमीरजादों से

एक ओर जहाँ विश्व के सभी देश लुप्तप्राय जीवों के संरक्षण के लिए अपनी तत्परता दिखा रहे हैं वहीं एशिया में नवधनाढ्यों के बीच बाघ की हड्डियों से बनने वाली शराब तथा उसके खाल, मांस और दाँतों से बनने वाले उत्पादों की बढ़ती माँग से पूरे विश्व में बाघों के संरक्षण पर खतरा मंडरा रहा है।

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

समुद्रों में बढ़ते डैड जोन से जलजीवन पर खतरा

यदि धरती पर पर्यावरण का संकट बरकरार रहा तो समुद्र में भी जीवन खत्म हो जाएगा। इसकी वजह है महासागरों के गहरे पानी में कम होती आक्सीजन की मात्रा। यह कुछ वैसा ही नजारा होगा जैसा हजारों साल पहले समुद्र में ज्वालामुखी फटने पर हुआ होगा। महासागरों के अध्ययन बता रहे हैं कि समुद्र में 'डेड जोन' बनते जा रहे हैं।

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

पर्यावरण में बदलाव लाता है सल्फर

धरती को सदियों से बार-बार ज्वालामुखी विस्फोटों का सामना करना पड़ा है। एक नए शोध में दावा किया गया है कि करीब दस करोड़ वर्ष पहले ज्वालामुखियों की बाढ़ में समुद्री जीवन का एक तिहाई हिस्सा खत्म हो गया होगा। अब तक माना जाता था कि वातावरण में छोड़ा जाने वाला कार्बन डाइआक्साइड मौसम में आ रहे बदलावों का मुख्य कारण है।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

बाघों की संख्या दोगुनी करने का संकल्प

बाघों की घटती संख्या पर चिंता

थाईलैंड में हाल ही में तेरह एशियाई देशों की एक बैठक में बाघों की लगातार घटती संख्या पर बेहद दुख जताया गया है। बैठक के दौरान संकल्प लिया कि 2022 तक बाघों की संख्या दुगुनी हो जानी चाहिए।

अब तो अपने बाघों को बचाएं

पिछली शताब्‍दी के आरंभ में बाघों की आबादी करीब 40 हजार थी। अब उनमें से केवल 1411 भारत में बाकी बचे हैं। पिछले वर्ष भारत में 86 बाघों की जान गई। भारत में करीब 37 बाघ अभयारण्‍य हैं लेकिन इनमें से करीब 17 अब अपनी बाघों की आबादी को पूरी तरह खो चुकी हैं या खोने की कगार पर हैं।