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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

समुद्रों में बढ़ते डैड जोन से जलजीवन पर खतरा

यदि धरती पर पर्यावरण का संकट बरकरार रहा तो समुद्र में भी जीवन खत्म हो जाएगा। इसकी वजह है महासागरों के गहरे पानी में कम होती आक्सीजन की मात्रा। यह कुछ वैसा ही नजारा होगा जैसा हजारों साल पहले समुद्र में ज्वालामुखी फटने पर हुआ होगा। महासागरों के अध्ययन बता रहे हैं कि समुद्र में 'डेड जोन' बनते जा रहे हैं।
धरती पर अनाज उपजाने के लिए उर्वरकों का जमकर उपयोग किया जाता है। मिंट्टी में मिले ये रासायनिक उर्वरक नदियों में मिलकर समुद्र में पहुंचते हैं। जिनसे समुद्र की वनस्पति और जीव-जंतु नष्ट होते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट होता है। ऐसे ही बनता है 'डेड जोन'। दुनिया के सागरों और महासागरों में ऐसे 400 'डेड जोन' बन चुके हैं।

एक और बड़ा खतरा है महासागरों में तेजी से आक्सीजन का कम होना। विशेषज्ञों की राय में इस सदी के अंत तक महासागरों में घुली हुई आक्सीजन के स्तर में 7 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। महासागरों में आक्सीजन केवल बारिश पानी से पहुंचती है। बरसात का पानी या तो धरती में विलीन हो जाता है या समुद्री जलधाराओं में प्रवाहित होकर गहरे महासागरों तक पहुंचता है।

जलवायु परिवर्तन के चलते ये दोनों प्रक्रियाएं प्रभावित हो रही हैं। समुद्र की सतह का जल गर्म होकर हल्का हो जाता है और इस प्रक्रिया में पानी से आक्सीजन निकल जाती है। आक्सीजन की कमी पानी में रहने वाले जीवन को नष्ट करता है।

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