भारत में वर्ष 2002 में हुए अंतिम बड़े सर्वेक्षण में बाघों की संख्या 3642 पाई गई थी. वन्यजीव संरक्षण में जुटे कार्यकर्ताओं ने बाघों की संख्या में लगातार हो रही कमी के लिए शिकार और तेजी से फैलते नगरों को जिम्मेदार बताया है. और वो कहते हैं कि प्रशासन को इस संबंध में और कदम उठाने चाहिए.
भारतीय जंगलों में बाघों के संरक्षण के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने आपात उपायों की सूची जारी की है. इसी के तहत बाघ संरक्षण बल के गठन की घोषणा की गई है. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस बल में कितने पूर्व सैनिकों की भर्ती की जाएगी.
दो-तिहाई की गिरावट: सरकार ने मई में एक गणना कराई थी, जिसमें पता चला था कि देश के जंगलों में अनुमान से कहीं कम बाघ रह रहे हैं. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के इस अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि कुछ राज्यों से बाघों की संख्या में पाँच वर्षों में लगभग दो-तिहाई तक की गिरावट आई है. अध्ययन की अंतिम रिपोर्ट दिसंबर में आएगी.
वन्यजीव विशेषज्ञों ने शिकारियों और बाघ की खाल के अवैध व्यापार को रोकने में असफलता के लिए भारत सरकार की आलोचना की है. बाघों का शिकार उनके शरीर के अंगों को हासिल करने के लिए किया जाता है. बाघ की खाल का वस्त्रों के लिए और हड्डियों की दवाएँ बनाने में इस्तेमाल होता है. चीन में बाघ की खाल की कीमत 12500 डॉलर यानी लगभग पाँच लाख रुपए तक मिल जाती हैं. रिपोर्टो के अनुसार एक शताब्दी पहले भारत में लगभग 40 हजार बाघ थे.
(आधारित) (रिपोर्ट नईदुनिया) स्रोत: वेबदुनिया से साभार
चित्र: विकिपीडिया
1 टिप्पणी :
आपके चिठ्ठे पर आ कर बहुत अच्छा लगा, अच्छी जानकारियां बांट रहे है आप!
एक टिप्पणी भेजें
पर्यानाद् आपको कैसा लगा अवश्य बताएं. आपके सुझावों का स्वागत है. धन्यवाद्