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सोमवार, 1 जुलाई 2013

अपने घर में भी सुरक्षित नहीं बाघ

उत्तराखंड में हिमालय की तराई में स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क को इलाके में बाघों का सबसे बड़ा घर कहा जाता है। इस टाइगर रिजर्व में लगभग 200 बाघ थे। इसे बाघों की सुरक्षित शरणस्थली के तौर पर जाना जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में बाघों की अस्वभाविक मौत की घटनाओं में वृद्धि की वजह से यह नेशनल पार्क काफी सुर्खियों में रहा है।




ताबड़तोड़ हुई बाघों की मौत और शिकार की घटनाओं ने कॉर्बेट पार्क की साख पर भी बट्टा लगाया है। हाल में छह दिन के भीतर तीन बाघों की अस्वाभाविक मौत की वजह से यह पार्क एक बार फिर सुर्खियों में है। हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक बाघ देखने के लिए इस पार्क में आते हैं। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद सरकार और पार्क प्रबंधन की नींद टूटी है।

नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के दिशानिर्देशों पर पर कॉर्बेट के विभिन्न इलाकों पर निगाह रखने के के लिए 100 अत्याधुनिक स्वचलित कैमरों का सहारा लिया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट में सहायता देने वाले वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ। अनीश अंधेरिया इसकी कार्यप्रणाली का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘पार्क में कोई भी अस्वाभाविक हरकत होते ही सुरक्षा दस्ते के लोग मौके पर पहुंच जाते हैं।' लेकिन बावजूद इसके बाघों की रहस्यमय मौत एक पहेली बन गई है।

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क : नैनीताल के पास हिमालय की पहाड़ियों पर स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क विविध वन्य जीवों और वनस्पतियों के लिए जाना जाता है। पार्क में बड़ी तादाद में बाघ, तेंदुओं और हाथियों के अलावा बहुत से दुर्लभ पशु पक्षियों को देखा जा सकता है। लगभग 318 वर्ग किमी। के क्षेत्र में फैला यह नेशनल पार्क प्रोजेक्ट टाइगर के अधीन आने वाला देश का पहला पार्क है। बाघों की घटती तादाद पर अंकुश लगाने के लिए इस पार्क को 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बनाया गया था।

अंग्रेज वन्यजीवों की रक्षा करने के शौकीन थे। वर्ष 1935 में रामगंगा के इस इलाके को वन्य पशुओं के लिए सुरक्षित किया गया। उस समय के गवर्नर मॉलकम हेली के नाम पर इस पार्क का नाम हेली नेशनल पार्क रखा गया। आजादी के बाद इस पार्क का नाम रामगंगा नेशनल पार्क रख दिया गया। भारत सरकार ने इलाके मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट की लोकप्रियता और उनके काम को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1957 में इस पार्क का नाम जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क रख दिया।

मशहूर शिकारी : देश के आजाद होने तक इलाके में रहने वाले जिम कॉर्बेट का नाम पूरी दुनिया में एक शिकारी के तौर पर मशहूर हो गया था। जिम अचूक निशानेबाज तो थे ही, उनको वन्यजीवों से भी बेहद लगाव था। उन्होंने इलाके के कई आदमखोर शेरों को मारकर सैकड़ों लोगों की जान बचाई थी। कालाढुंगी में जिम कॉर्बेट के घर को अब संग्रहालय बना दिया गया है। वहां जिम की इस्तेमाल की गई तमाम चीजें रखी हैं। जिम कॉर्बेट का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट था। उनका जन्म 25 जुलाई 1875 को हुआ था। वर्ष 1947 में जिम कॉर्बेट अपनी बहन के साथ केन्या चले गए थे। वहीं आठ साल बाद उनका निधन हो गया।

अवैध शिकार : इस पार्क में बाघों की लगातार मौत ने इसकी सुरक्षा और रख रखाव पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पार्क के अधिकारियों का कहना है कि शिकारियों ने शायद पानी के उन स्त्रोतों में ही जहर मिला दिया था जहां बाघ पानी पीने जाते हैं। कॉर्बेट पार्क के फील्ड डायरेक्टर समीर सिन्हा कहते हैं, "हाल में बाघों की मौतों के पीछे संदिग्ध शिकारियों का ही हाथ है।" उन्होंने पार्क में निगरानी बढ़ाने का आदेश दिया है। पार्क के डिप्टी डायरेक्टर साकेत बडोला कहते हैं, "पार्क में सुरक्षा बढ़ा दी गई है और पानी के उन नालों में जहर मिले होने की आशंका की जांच की जा रही है।"

इस पार्क में बाघों की बढ़ती मौतों से पशुप्रेमी भी चिंतित हैं। नैनीताल में एक वन्यजीव कार्यकर्ता सुनीता चौहान कहती हैं, "कॉर्बेट पार्क में बाघों की लगातार होने वाली मौतें बेहद चिंताजनक हैं।" उनका सवाल है कि क्या इसे रोकने की दिशा में सरकार और पार्क प्रबंधन कोई ठोस पहल नहीं कर सकता ? लेकिन उनके इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।

साभार : डोयचे वैले

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