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शुक्रवार, 18 मई 2012

लंदन ओलिंपिक को 'ग्रीन' बनाने की कोशिश

लंदन ओलिंपिक खेलों को अब तक का सबसे 'ग्रीन' ओलिंपिक बनाना चाहता है। इसके लिए शहर में साफ-सफाई से लेकर जहरीली गैसों को कम करने पर विचार किया जा रहा है। जब लंदन को ओलिंपिक खेलों की मेजबानी के लिए चुना गया, तभी खेलों को पर्यावरण के लिहाज से अच्छा बनाने की भी बात कही गई। तब की ब्रिटिश सरकार ने दावा किया खेलों की तैयारी ऐसे की जाएगी कि लंदन और हराभरा बनाया जा सके।

हालांकि हर बार ओलिंपिक या ऐसे अन्य खेलों के दौरान यही वादा किया जाता है कि शहरों को और खूबसूरत बनाया जाएगा और खेलों की तैयारी में इस बात का पूरा ध्यान रखा जाएगा कि उनसे पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे, लेकिन अधिकतर यह वादे केवल कागजों तक ही सीमित हो कर रह जाते हैं।

ब्रिटेन में ग्रीनपीस के अध्यक्ष जॉन सेवेन ने इस बारे में कहा कि ओलिंपिक खेलों के आयोजन में विरोधाभास है, जब आप कोई कार्यक्रम आयोजित करते हैं, चाहे वह दो दिन के लिए हो या दो हफ्ते के लिए, उसे पर्यावरण के लिए ढालना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे खेल समारोह में दुनियाभर से लोग आते हैं और ऐसे में शहर की साफ-सफाई एक बड़ी चुनौती बन जाती है।

सेवेन कहते हैं कि यहां थोड़े से वक्त के लिए बहुत सारे लोग आने वाले हैं, वे यहां आपके संसाधनों का इस्तेमाल करेंगे और फिर से वापस चले जाएंगे, लेकिन अगर अन्य खेलों से तुलना की जाए तो कहा जा सकता है कि लंदन अपना वादा पूरा करने में एक हद तक कामयाब हो पाया है।

जॉन सेवेन बताते हैं कि जिस जगह ओलिंपिक पार्क बना है, वहां पहले प्रदूषित औद्योगिक स्थल हुआ करता था, इसकी मरम्मत की गई है। इसे नई शक्ल देने के लिए बहुत बड़ा अभियान चलाया गया है और इसे शहर का एक महत्वपूर्ण अंग बनाया जाएगा। इसलिए यह 2004 के एथेंस ओलिंपिक जैसा नहीं है, जहां अब उस वक्त इस्तेमाल की गई इमारतें खंडहर बन गई हैं।

ओलिंपिक स्टेडियम बनाने के लिए जिस सामग्री का इस्तेमाल किया गया, उसमें इस बात पर खास ध्यान दिया गया कि उस से कार्बन डाई ऑक्साइड का कम उत्सर्जन हो। प्रदूषित जमीन को साफ किया गया, बारिश के पानी को इकठ्ठा कर के उसका इस्तेमाल किया गया।

लेकिन इसके बाद भी कई जगह चूक हुई। एक विंड टर्बाइन के प्रोजेक्ट को खारिज करना पड़ा, जो पर्यावरणविदों के लिए बेहद निराशाजनक रहा। इसके अलावा खेलों के साथ बीपी और डाउ केमिकल जैसी कंपनियों के नाम जुड़ने से भी खेलों की छवि पर बुरा असर पड़ा।

पिछले साल मेक्सिको की खाड़ी में बीपी के तेल का रिसाव हुआ, वहीं डाउ केमिकल्स का नाम 1984 की भोपाल त्रासदी से जुड़ा है, लेकिन इस सब के बाद भी जानकार मानते हैं कि आने वाले सालों में लंदन अपने वादे पर बना रहेगा। जिन इलाकों में खेलों के कारण साफ-सफाई हुई है, उन पर भविष्य में भी ध्यान दिया जाएगा। हालांकि बुरी अर्थव्यवस्था के चलते इन वादों के पूरे होने पर संदेह बना ही रहेगा।

साभार : बीबीसी

2 टिप्‍पणियां :

गिरींद्र ने कहा…

अगर ऐसा हो सके तो बहूत ही बढिया होगा लेकिन ग्रीन पीस को भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्‍मेदार कंपनी खरीदने वाले डाऊ कैमिकल कंपनी के खिलाफ भी तो आवाज उठानी थी. ऐसा नहीं किया जाना बहूत गलत हो रहा है. भारत को ईसके लिए विरोघ करना चाहिए.

Aanad Khurana ने कहा…

डाउ केमिकल्स ka London Olympic me sponsor hona galat hai. India ko dusare deshon ke saath milkar iske virudh protest karna tha. green olympic to thik baat hai

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