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शुक्रवार, 9 नवंबर 2007

पृथ्‍वी के साथ अपनी सेहत का भी ध्यान रखें

दीपावली आ गई तो जाहिर सी बात है कि इस वर्ष भी आतिशबाजी होगी, खूब पटाके चलेंगे और चंद घंटों में करोड़ों या कहूं कि अरबों रुपए स्‍वाहा हो जाएंगे. हर साल यही होता है लेकिन क्‍या कभी कोई इस बारे में सोचता है कि इस एक दिन की आतिशबाजी से पर्यावरण को कितना नुकसान होता है ? हमारे देश में आज भी लाखों लोग दो वक्‍त का भरपेट भोजन पाने से वंचित हैं और विडंबना यह है कि हमारे ही देश में करोड़ों बल्कि अरबों रुपए बेवजह फूंक दिए जाते हैं. दीपावली मनाने के इससे बेहतर तरीके हो सकते हैं, बशर्ते मन में इच्‍छा हो. इस बार जरा इन बातों पर भी गौर कर के देखें.

देश भर के अस्पतालों में पिछले कुछ वर्षों से दीवाली के बाद दमा, नाक की एलर्जी, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों की संख्या कम से कम दोगुनी बढ़ जाती है. जलने, आँख को गंभीर क्षति पहुँचने और कान का पर्दा फटने जैसे हादसे भी बहुत होते हैं. इस स्थिति को देखते हुए स्वास्थ्य और पर्यावरण विशेषज्ञों ने हमेशा की तरह आम जनता को पटाखे नहीं छोड़ने अथवा कम से कम और धीमी आवाज वाले पटाखे छोड़ाने की सलाह दी है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली में पटाखों के कारण दीवाली के बाद वायु प्रदूषण 6 से 10 गुना और आवाज का स्तर 15 डेसीबल बढ़ जाता है. इसके कारण श्रवण क्षमता प्रभावित होने, कान के पर्दे फटने, दिल के दौरे पड़ने, सिर दर्द, अनिद्रा और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं. पटाखों के कारण वातावरण में हानिकारक गैसों तथा निलंबित कणों का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण फेफड़े, गले तथा नाक संबंधी गंभीर समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं. दमा के मरीजों के लिए दीवाली के आसपास का समय न केवल पटाखों के कारण, बल्कि अन्य कारणों से भी मुसीबत भरा होता है.

तेज आवाज करने वाले पटाखे सामान्य पटाखों से अधिक खतरनाक हैं क्योंकि इनसे कान के पर्दे फटने, रक्तचाप बढ़ने और दिल के दौरे पड़ने की घटनाएँ बढ़ जाती हैं. बच्चों, गर्भवती महिलाओं, दिल तथा साँस के मरीजों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पिछले वर्ष पटाखों की जाँच से पाया कि तेज आवाज वाले करीब 90 प्रश पटाखे आवाज के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं. बोर्ड ने ऐसे पटाखों पर पाबंदी लगाने का सुझाव दिया है. आतिशबाजी और तेज पटाखों के कारण आँखों को भी गंभीर क्षति पहुँचने का खतरा बहुत अधिक होता है. पटाखों से निकलने वाली चिंगारियों एवं आग से आँखों की कार्निया जल सकती है, जिससे स्थायी तौर पर अंधापन आ सकता है.

तो क्‍या आप नहीं चाहते कि ऐसा कोई हादसा नहीं हो ? छोटी मोटी फुलझड़ी या रोशनी करने वाली आतिशबाजी तक तो ठीक है लेकिन कृपया अपने आसपास रहने वाले मरीजों, कमजोर दिल वाले लोगों और सबसे बढ़ कर खुद अपने स्‍वास्‍थ्‍य और सुरक्षा के लिए अनावश्‍यक आतिशबाजी और धन की बर्बादी को इस बार रोकें. दीपावली मनाने के इससे बेहतर कई तरीके हो सकते हैं.

अपने नजदीक के किसी अनाथालय में जाकर छोटे छोटे बच्‍चों को मिठाई खिलाएं. हो सके तो उन्‍हें वस्‍त्र आदि भेंट करें. यकीन मानिए उनके चेहरों पर आने वाली खुशी की झलक और उल्‍लास के शोर से आपको जो आनंद मिलेगा वह किसी भी आतिशबाजी के शोर से नहीं मिल सकता.

दीपावली आप सभी को मंगलमय हो.

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