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सोमवार, 12 नवंबर 2007

पिछली सदी में 39 हजार बाघ विलुप्त

पूरी दुनिया में बाघों के अस्तित्व पर संकट मंडराया हुआ है. पिछली सदी में इंडोनेशिया में बाघ की तीन उप प्रजातियों का पूरी तरह सफाया हो गया है. भारतीय उपमहाद्वीप में भी 20वीं सदी में 39 हजार बाघ विलुप्त हो गए. वर्तमान सदी में भी यह संकट लगातार बना हुआ है और देश का राष्ट्रीय पशु अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है. एक अनुमान के मुताबिक पिछली सदी में भारतीय उपमहाद्वीप से 39 हजार बाघ गायब हो गए.

बाघों की संख्या में निरंतर हो रहे ह्रास की वजह से ही 1970 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय पशु के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इसके बावजूद शिकारी अपने इरादों में लगातार कामयाब हो रहे हैं. हाल ही में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा कराई गई गणना से खुलासा हुआ है कि मात्र पिछले छह साल में ही भारत में बाघों की 50 फीसदी संख्या कम हो चुकी है.

बाघों के जीवन पर आसन्न खतरे के चलते ही 1972 में पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पास कराया था. इसके बाद बाघ को संरक्षित प्रजातियों की सूची में डाल दिया गया. वर्ष 1972 में ही पहली बार बाघों की आधिकारिक गणना कराई गई थी जिसमें इनकी संख्या मात्र 1827 निकली. वर्ष 2001 में बाघों की संख्या में इजाफा नजर आया और उनकी आबादी 3642 बताई गई लेकिन छह साल के बाद जब इस वर्ष इनकी गणना हुई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने 2007 की गणना में इनकी संख्या सिर्फ 1300 से 1500 के बीच बताई है. हाल ही की गणना से पता चला है कि अकेले मध्य प्रदेश में 65 प्रतिशत बाघ धरती से विलुप्त हो गए हैं. छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में क्रमश: 100-100 से भी कम बाघ बचे हैं.

वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि बाघ की गिनती का काम उनके पंजों के निशान के आधार पर किया जाता है, लेकिन कई बार बाघ एक ही जगह से बार-बार गुजरते हैं जिससे उनके पंजों की संख्या बढ़ जाती है. इस कारण हो सकता है कि इनकी संख्या वर्तमान आंकड़े से और भी कम हो.

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