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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2007

पर्यानाद इसलिए

हर रोज वृक्ष कट रहे हैं, जीव जंतुओं पर अत्‍याचार हो रहा है, ओजोन की परत में छेद बढ़ रहा है, मौसम चक्र खंडित होता जा रहा है, भूजल दोहन के कारण शुद्ध पेयजल का संकट बढ़ता जा रहा है और प्रकृति आर्तनाद् कर रही है. क्‍या कभी आपने सोचा है कि इस सबका जिम्‍मेदार कौन है? ग्रीन हाउस इफैक्‍ट, ग्‍लोबल वार्मिंग, सूखा, बाढ़, दावानल, पिघलते ग्‍लेशियर, उफनता समुद्र, सुनामी ...... और भी न जाने क्‍या क्‍या ? लेकिन हैरत है कि हम फिर भी चेतना शून्‍य हैं. यह जड़ता क्‍यों है, इतना संवेदनहीनता की क्‍या वजह है ? क्‍यों नहीं सुन रहा कोई प्रकृति का आर्तनाद्? पर्यानाद् इसी जड़ हो चुकी चेतना को झकझोरने का छोटा सा प्रयास है. मैं कोई पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं बल्कि एक आहत प्रकृति प्रेमी मात्र हूं. जो मुझे दिखेगा वही दिखाने का प्रयास करूंगा. मैं पर्यानाद् हूं.

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