बस इसे देखें और सोचें..........
शुक्रवार, 4 जुलाई 2008
गुरुवार, 3 जुलाई 2008
एवरेस्ट को कचरा मुक्त करेगा चीन
चीन ने माउंट एवरेस्ट पर आवाजाही सीमित करने का फैसला किया है ताकि दुनिया की सबसे ऊँची चोटी को कचरे से मुक्त किया जा सके। इससे पूर्व मई में साम्यवादी नेतृत्व ने पर्वतारोहण के समय को सीमित कर इस 29035 फीट ऊँची चोटी पर पहुँचने वाले दक्षिणी मार्ग को बंद करने के लिए नेपाली सरकार को राजी कर लिया था ताकि चीन विरोधी प्रदर्शनकारी बीजिंग ओलिंपिक मशाल यात्रा में खलल न डाल सकें। इस चोटी पर हुई मशाल यात्रा यानी माउंट कोमोलांग्मा के हफ्तों बाद अब चीन की इस पर्वत से टीन केन बोतलें ऑक्सीजन के कनस्तर और पर्वतारोहियों के बस्ते जैसे सामान को हटाने के लिए विशेष दल भेजने की योजना है।
सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ के अनुसार तिब्बती पर्यावरणीय सुरक्षा एजेंसी के नेता झेंग योंग्जे ने कहा कि हमारी यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि एवरेस्ट से बहने वाली नदी का पानी साफ रहते हुए समुद्र में मिले। हमारा उद्देश्य लोगों की छेड़छाड़ से माउंट एवरेस्ट को बचाना है।
इस अभियान को वर्ष 2009 के पहले छह महीने में पूरा करने की योजना है। इसका उद्देश्य हिमालय के इस क्षेत्र की नाजुक पर्यावरणीय परिस्थिति की हिफाजत करना है। इसका एक और मकसद रोंगबक हिमखंड को पिघलने से बचाना है, जो बीते एक दशक में अपने स्थान से 490 फिट पीछे खिसक गया है।
ब्रिटेन के दि इंडिपेंडेंट अखबार के अनुसार सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोरगे द्वारा पहली बार विश्व की इस सबसे ऊँची चोटी पर फतह करने के बाद से हजारों पर्वतारोही यहाँ आ चुके हैं। वर्ष 2007 में चीन के उत्तरी ओर से एवरेस्ट पर 40 हजार पर्वतारोही आए। इन्होंने 120 टन कचरा क्षेत्र में छोड़ दिया। लंदन के इस अखबार का कहना है कि वर्ष 2004 में 24 स्वयंसेवियों के दल ने आठ टन कचरा हटाया था। वर्ष 2006 में एक और सफाई दल ने 1.3 टन कचरा एवरेस्ट के क्षेत्र से हटाया।
सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ के अनुसार तिब्बती पर्यावरणीय सुरक्षा एजेंसी के नेता झेंग योंग्जे ने कहा कि हमारी यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि एवरेस्ट से बहने वाली नदी का पानी साफ रहते हुए समुद्र में मिले। हमारा उद्देश्य लोगों की छेड़छाड़ से माउंट एवरेस्ट को बचाना है।
इस अभियान को वर्ष 2009 के पहले छह महीने में पूरा करने की योजना है। इसका उद्देश्य हिमालय के इस क्षेत्र की नाजुक पर्यावरणीय परिस्थिति की हिफाजत करना है। इसका एक और मकसद रोंगबक हिमखंड को पिघलने से बचाना है, जो बीते एक दशक में अपने स्थान से 490 फिट पीछे खिसक गया है।
ब्रिटेन के दि इंडिपेंडेंट अखबार के अनुसार सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोरगे द्वारा पहली बार विश्व की इस सबसे ऊँची चोटी पर फतह करने के बाद से हजारों पर्वतारोही यहाँ आ चुके हैं। वर्ष 2007 में चीन के उत्तरी ओर से एवरेस्ट पर 40 हजार पर्वतारोही आए। इन्होंने 120 टन कचरा क्षेत्र में छोड़ दिया। लंदन के इस अखबार का कहना है कि वर्ष 2004 में 24 स्वयंसेवियों के दल ने आठ टन कचरा हटाया था। वर्ष 2006 में एक और सफाई दल ने 1.3 टन कचरा एवरेस्ट के क्षेत्र से हटाया।
शुक्रवार, 16 मई 2008
खतरे की सूची में आया धुवीय भालू
अमेरिकी सरकार ने ध्रुवीय भालू को खतरे में पड़ी प्रजातियों की सूची में डाला है और चेतावनी दी है कि उत्तर धु्रव [आर्कटिक] महासागर में बर्फ पिघलने के कारण वहां उनका आवास खतरे में है। बर्फ पिघलने के रिकार्ड किए गए अभी तक के निम्नतम स्तर से जुड़ीं तस्वीरें उपग्रह से मिलने के बाद गृह मंत्री डर्क केम्पथोर्न ने कहा कि आज मैं ध्रुवीय भालू को खतरे में पड़ी प्रजातियों के कानून [ईएसए] की सूची में डाल रहा हूं। सरकार, वैज्ञानिकों तथा अमेरिकी मत्स्य और वन्यप्राणी सेवा विभाग की सलाह पर कार्य कर रही है।
केम्पथोर्न ने कहा कि ईएसए के कानूनी मानकों ने ध्रुवीय भालू को खतरे में पड़ी प्रजातियों की सूची में डालने को बाध्य किया है, लेकिन मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस प्रजाति के कानून की सूची में दर्ज होने से विश्व में जलवायु परिवर्तन या समुद्र में बर्फ पिघलना नहीं रुकेगा। किसी भी बड़े निराकरण के लिए सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को कदम उठाना होंगे। केम्पथोर्न ने अलास्का और ब्यूफोर्ट सी के टापूओं में ध्रुवीय भालुओं पर नजर रखने के लिए बड़े कदम उठाने की बात कही है। उन्होंने विदेशी सरकारों से भी इस प्रजाति के बचाव के लिए सहयोग करने को कहा है।
केम्पथोर्न ने कहा कि ईएसए के कानूनी मानकों ने ध्रुवीय भालू को खतरे में पड़ी प्रजातियों की सूची में डालने को बाध्य किया है, लेकिन मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस प्रजाति के कानून की सूची में दर्ज होने से विश्व में जलवायु परिवर्तन या समुद्र में बर्फ पिघलना नहीं रुकेगा। किसी भी बड़े निराकरण के लिए सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को कदम उठाना होंगे। केम्पथोर्न ने अलास्का और ब्यूफोर्ट सी के टापूओं में ध्रुवीय भालुओं पर नजर रखने के लिए बड़े कदम उठाने की बात कही है। उन्होंने विदेशी सरकारों से भी इस प्रजाति के बचाव के लिए सहयोग करने को कहा है।
विश्व में मौजूद कुल 25 000 ध्रुवीय भालुओं की संख्या में से दो तिहाई भालू कनाडा में हैं। इसके बाद भी वहां की सरकार ने इसे खतरे में पड़ी प्रजातियों की सूची में नहीं डाला है। कनाडा की एक पैनल ने पिछले महीने वहां की सरकार से ध्रुवीय भालू को बचाने के लिए कदम उठाने का निवेदन किया था।
इस प्रजाति के प्रति विशेष चिंता जताई गई है लेकिन इसे विलुप्त होने की कगार पर नहीं बताया गया है। केम्पथोर्न ने हालांकि कहा कि अगर ऐहतियात के कदम नहीं उठाए गए तो धुव्रीय भालू के भविष्य में विलुप्ति की कगार पर पहुंचने की संभावना है।
धीरे-धीरे मरुस्थल में बदला था सहारा
एक नए शोध के अनुसार अफ्रीका का सहारा क्षेत्र लगातार हरियाली घटते जाने की वजह से करीब 2700 साल पहले विश्व के सबसे बड़े मरुस्थल में तब्दील हो गया। हालाँकि पहले की खोज में कहा जाता रहा है कि जलवायु में अचानक परिवर्तन होने से ऐसा हुआ था। उत्तरी अफ्रीका में स्थित सहारा करीब छह हजार साल पहले काफी हराभरा था और वहाँ पेड़ों की अच्छी संख्या थी। इसके अलावा वहाँ कई बड़ी झीलें भी हुआ करती थीं।
यूरोप, अमेरिका और कनाड़ा के वैज्ञानिकों के एक दल के शोध के अनुसार ऑस्ट्रेलिया से भी बड़े भाग में फैले सहारा में आबादी भी थी और पर्याप्त हरियाली भी। सहारा क्षेत्र में भौतिक बदलाव की कहानी का ब्यौरा देने वाले अधिकतर तत्व नष्ट हो चुके हैं लेकिन वैज्ञानिकों ने सहारा में मौजूद कुछ बड़ी झीलों में से एक योआ की विभिन्न परतों का अध्ययन किया। योआ उत्तरी चाड में स्थित है। वहाँ किए गए अध्ययन से नई जानकारी सामने आई जो पुरानी मान्यताओं के विपरीत है।
नए अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक स्टीफन क्रोपलिन का कहना है कि ताजा तथ्य प्रचलित मान्यताओं के विपरीत है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार करीब 5500 साल पहले हरियाली में तेजी से कमी आने के कारण मरुस्थल का विस्तार हुआ और सहारा विश्व का सबसे बड़ा रेगिस्तान बन गया। इसके पहले 2000 में कोलंबिया विश्वविद्यालय के पीटर दि मेनोकल द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार सहारा की जलवायु में तेजी से बदलाव हुआ था।
क्रोपलिन ने कहा कि योआ झील से मिले तथ्य विपरीत कहानी कहते हैं और सहारा के मरुस्थल में तब्दील होने में समय लगा। उन्होंने कहा कि मेनोकल के आँकड़े गलत नहीं हैं लेकिन उनकी गलत व्याख्या की गई।
यूरोप, अमेरिका और कनाड़ा के वैज्ञानिकों के एक दल के शोध के अनुसार ऑस्ट्रेलिया से भी बड़े भाग में फैले सहारा में आबादी भी थी और पर्याप्त हरियाली भी। सहारा क्षेत्र में भौतिक बदलाव की कहानी का ब्यौरा देने वाले अधिकतर तत्व नष्ट हो चुके हैं लेकिन वैज्ञानिकों ने सहारा में मौजूद कुछ बड़ी झीलों में से एक योआ की विभिन्न परतों का अध्ययन किया। योआ उत्तरी चाड में स्थित है। वहाँ किए गए अध्ययन से नई जानकारी सामने आई जो पुरानी मान्यताओं के विपरीत है।
नए अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक स्टीफन क्रोपलिन का कहना है कि ताजा तथ्य प्रचलित मान्यताओं के विपरीत है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार करीब 5500 साल पहले हरियाली में तेजी से कमी आने के कारण मरुस्थल का विस्तार हुआ और सहारा विश्व का सबसे बड़ा रेगिस्तान बन गया। इसके पहले 2000 में कोलंबिया विश्वविद्यालय के पीटर दि मेनोकल द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार सहारा की जलवायु में तेजी से बदलाव हुआ था।
क्रोपलिन ने कहा कि योआ झील से मिले तथ्य विपरीत कहानी कहते हैं और सहारा के मरुस्थल में तब्दील होने में समय लगा। उन्होंने कहा कि मेनोकल के आँकड़े गलत नहीं हैं लेकिन उनकी गलत व्याख्या की गई।
रविवार, 30 मार्च 2008
अंधेरे से उजाले की किरण
यह है सिडनी का प्रसिद्ध ओपेरा हाउस। रोशनी से जगमगाता (ऊपर) और अंधेरे में डूबा हुआ (नीचे)। ग्लोबल वार्मिग के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से शनिवार, 29 मार्च को आस्ट्रेलिया के इस सबसे महत्वपूर्ण शहर की सभी बत्तियां एक घंटे के लिए बुझा दी गई थीं। अंधकारमय भविष्य से दुनिया को आगाह करने के लिए अर्थ आवर कार्यक्रम के तहत 35 से ज्यादा देशों के लगभग 370 शहर शनिवार को एक घंटे के लिए अंधेरे में डूबे रहेंगे।
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