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शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

सन् 2007 में 3 लाख 30 हजार टन... लेकिन क्‍या?

मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन फॉर इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी (एमएआईटी) की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2007 में भारत में 3 लाख 30 हजार टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकला, जिसमें से केवल 19 हजार टन को रिसाइकल किया जा सका। रिपोर्ट में बताया गया है कि केवल टेलीविजन और कम्प्यूटर से 56,324 टन कचरा निकला, जिसमें से केवल 12 हजार टन को ही प्रोसेस किया गया। बाकी कचरा पर्यावरण संतुलन के लिए गंभीर खतरा बन रहा है।

एचसीएल इंफोसिस्टम्स के कार्यकारी उपाध्यक्ष जॉर्ज पॉल कहते हैं कि भारत में बड़े पैमाने पर रिसाइकल प्लांट की जरूरत है जिसमें सरकार को सहयोग करना चाहिए।एक अध्ययन के मुताबिक चीन और जापान में इलेक्ट्रॉनिक कचरा गंभीर परेशानी का कारण बनता जा रहा है। भारत की अपेक्षा उन देशों में अत्यधिक मात्रा में ई-वेस्ट निकलता है। प्रोसेस की प्रक्रिया तेज होने के बावजूद वहाँ ई-वेस्ट का समुचित निपटारा नहीं हो पाता है।

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक पदार्थों में कई खतरनाक रसायन होते हैं जो स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। जागरूकता की कमी और नष्ट करने की मुश्किल प्रक्रिया के कारण भारत में ई-वेस्ट को रिसाइकल करने का कोई भी प्रोजेक्ट पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहा है।

सच्‍चई यह है कि इलेक्ट्रॉनिक चीजों का बाजार जिस तेजी से बढ़ रहा है उतनी तेजी से इलेक्ट्रॉनिक कचरे को नष्ट करने का काम नहीं हो पा रहा है। अब यही इलेक्ट्रॉनिक कचरा न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर के देशों के लिए मुसीबत का कारण और बीमारियों का घर बनता जा रहा है।


नईदुनिया से साभार

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