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मंगलवार, 25 दिसंबर 2007

मोबाइल, आईपॉड, लैपटॉप, सब पर्यावरण के दुश्‍मन

इलेक्‍ट्रॉनिक गैजेट्स के प्रति लोगों की दीवानगी लगातार बढ़ रही है. इसी के साथ बढ़ रहा है कुदरत पर अत्याचार. लोग नए गैजेट्स की खूबियों से प्रभावित होकर पुराने को छोड़ देते हैं, लेकिन उसका सुरक्षित निपटान नहीं करते. नतीजा होता है पर्यावरण में जहरीली गैसों की मात्रा में वृद्धि. ये गैसें हवा में जहर का काम करती हैं.

सिर्फ ब्रिटेन में हर साल 11 हजार से ज्यादा पुराने सेलफोन मेज की दराज में डाल दिए जाते हैं. यह आंकड़ा क्रिसमस पर और भी बढ़ जाता है. त्यौहार के मौसम में लोग बड़ी संख्या में पुराने को छोड़ नया सेलफोन और लैपटाप खरीद डालते हैं. यह सोचे बिना कि पुराने उपकरणों का निपटारा कैसे किया जाए.

पुराने उपकरणों का सबसे बेहतर इस्तेमाल तो यह होगा कि इन्हें किसी जरूरतमंद को दे दिया जाए या बेच दिया जाए. रीसाइकलिंग एक और बेहतर विकल्प हो सकता है. कंपनियां कई बार पुराने हैंडसेट के बदले नया देने की पेशकश देती हैं. लेकिन ब्रिटेन में लोग अपने हैंडसेट बेचने या किसी को देने के बजाय घर के कोने में फेंकना बेहतर समझते हैं.

एक मोबाइल कंपनी के मैनेजर जान थामसन के मुताबिक समस्या यह है कि लोग अपने मोबाइल फोन हर साल बदल देते हैं. इनमें बहुत कम सेलफोन ही सुरक्षा मानकों के तहत डंप किए जाते हैं. यह वाकई एक खतरनाक चलन है. अनुमान के मुताबिक एक सेलफोन पांच साल तक चल सकता है. फिर भी यूरोप में 10 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ता हर साल अपना हैंडसेट बदल देते हैं.

विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि यदि मोबाइल फोन, लैपटाप या आईपाड बदलना जरूरी ही हो जाए, तो पुराने को रिसाइकलिंग के लिए दे देना सबसे बेहतर विकल्‍प है. प्रयास यह होना चाहिए कि ई कचरा कम से कम पैदा हो ताकि पर्यावरण को इससे होने वाली क्षति कम रहे. गैजेट्स का इस्‍तेमाल करने वालों को इसके सुरक्षित निपटान का दायित्‍व भी निभाना होगा.

2 टिप्‍पणियां :

मीनाक्षी ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी. मैं कल ही इस पर काम शुरु करती हूँ.. घर से ही शुरु ई कचरा की सफाई ..

अजित वडनेरकर ने कहा…

जानकारी बढ़िया है। कचरा-वचरा तो खैर निकलता रहता है मगर अपन इस लायक तो नहीं हुए हैं अभी कि ऐसा हाई-फाई कचरा घर से निकले।

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