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मंगलवार, 4 दिसंबर 2007

मानव के सर्वश्रेष्‍ठ होने का भ्रम

लंबे समय से यह धारणा चली आ रही थी कि चीजों को ग्रहण करने और उसे जानने समझने के मामले में मानव सभी प्राणियों से आगे है. हाल के एक अनुसंधान में यह तथ्य उभर कर आया है कि नन्हे चिंपैंजी याद्दाश्त के मामले में हमें आसानी से पछाड़ सकते हैं. मजे की बात यह है कि अदना से दिखने वाले इन चिंपैंजी की याद्दाश्त का मामला सिर्फ पेड़-पौधों या जंगलों से जुड़ा हुआ नहीं है. वे ज्ञान के क्षेत्र में और गिनती याद रखने तक में भी मनुष्यों से आगे हैं.

जापानी वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में पाया कि गिनती याद करने और उन्हें दोहराने के मामले में नन्हे चिंपैंजियों में वयस्क मानवों से कहीं ज्यादा और विलक्षण गुण होता है. क्योटो यूनिवर्सिटी के तेत्सूरो मात्सुजावा ने जापानी वैज्ञानिकों के इस ऐतिहासिक अध्ययन के निष्कर्षो के महत्व को रेखांकित किया है. उनका कहना है कि अब भी बहुत सारे लोग और अनेक जीव वैज्ञानिक मानते हैं कि मानव तमाम बोधात्मक क्रियाओं में चिंपैंजी से आगे हैं.

इस अनुसंधान के निष्कर्ष करेंट बायोलोजी में प्रकाशित किए गए हैं. निष्कषों में कहा गया है कि कोई इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता है कि चिंपैंजी पांच साल की उम्र में नन्हे चिंपैंजी याद्दाश्त के परीक्षण में आदमियों से अच्छा प्रदर्शन करेंगे. अनुसंधान में कहा गया है कि यहां हमने पहली बार प्रदर्शित किया है कि समान प्रक्रिया अपनाते हुए समान उपकरण से परीक्षण करने पर नन्हे चिंपैंजी में संख्यात्मक याद्दाश्त वयस्क मानव से ज्यादा होती है. उनमें विलक्षण कार्यकारी स्मृति क्षमता होती है.

मातृत्व से गुजर चुकी मादा चिंपैंजियों में अय पहली चिंपैंजी थी जिसने उचित अंकों से वास्तविक जीवन की वस्तुओं को लेबल करने के लिए अरबी अंकों का इस्तेमाल करना सीखा था. इस बार संपन्न नए परीक्षण में चिंपैंजियों या मानवों को टच-स्क्रीन की मदद से एक से ले कर नौ तक विभिन्न अंकों को पेश किया गया. इसके बाद इन अंकों को खाली वर्गो से बदल दिया गया. परीक्षण में हिस्सा ले रहे मानवों और चिंपैंजियों को यह याद रखना था कि अंक किन स्थलों पर आए थे. उन्हें उन वर्गो को उचित क्रम में छूना था.

अध्ययन में पाया गया कि नन्हे चिंपैंजी एक निगाह में अनेक अंक याद रख सकते हैं. उनकी ग्राह्य शक्ति इतनी पैनी है कि अगर उन अंकों को 210 मिली सेकेंड के लिए फ्लैश किया जाता है तो भी उन्हें याद रहता है. उनके प्रदर्शन में कोई परिवर्तन नहीं आता है. उल्लेखनीय है कि हमें मोटे तौर पर अपनी पलकें झपकाने में करीब 105 मिलीसेकेंड का समय लगता है. अनुसंधानकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि 210 मिलीसेकेंड इतना पर्याप्त समय नहीं है जिसमें मानव दृष्टि स्क्रीन का चक्कर लगाए.

अध्ययन में पाया गया कि कुल मिला कर तीन नन्हे चिंपैंजियों का प्रदर्शन अपनी मांओं से बेहतर है. तीनों नन्हे चिंपैंजी प्रदर्शन के मामले में वयस्क मानवों से भी बाजी मार ले गए. वयस्क मानवों का प्रदर्शन तीनों ही चिंपैंजियों से खराब था. वे रिस्पांस देने में ज्यादा सुस्त रहे. मात्सुजवा ने मानव के मुकाबले चिंपैंजियों के बेहतर प्रदर्शन की जटिल गुत्थी सुलझाने के प्रयास के तहत कहा कि चिंपैंजियों में किसी जटिल दृश्य या पैटर्न की विस्तृत एवं सटीक छवि को याद रखने की विशेष क्षमता होती है. उन्होंने कहा कि इस तरह की फोटोग्राफिक याददाश्त मानव के कुछ सामान्य बच्चों में भी होती है. फिर उम्र के साथ घटती जाती है.

3 टिप्‍पणियां :

Jobove - Reus ने कहा…

very good blog, congratulations
regard from Catalonia Spain
thank you

Pratyaksha ने कहा…

कल ही कहीं पढ़ा था कि पाँच साल के चिम्पैंज़ी ने कॉलेज के लड़कों को क्म्प्यूटर गेम्ज़ में हराया । वैसे कुछ भ्रम बने रहने चाहिये :-)

पारुल "पुखराज" ने कहा…

rochak tathya...dhanyavaad aur blog ka sangeet bahut karnpriya hai.shukriya

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