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रविवार, 2 दिसंबर 2007

आइए फिर याद करें भोपाल गैस त्रासदी

तेईस साल गुजर गए. मानव इतिहास की सबसे क्रूरतम् औद्योगिक दुर्घटना यानि भोपाल गैस त्रासदी को याद करने का समय एक बार फिर आ चुका है. कुछ रस्‍मी विरोध प्रदर्शन होंगे, कुछ आंसू बहाए जाएंगे और फिर जिंदगी आगे बढ़ जाएगी. लेकिन उन हजारों लोगों का जीवन उस काली रात के बाद हमेशा के लिए बदल चुका है जिनके अपने इस त्रासदी की भेट चढे थे. दुर्भाग्‍य यह है कि आज भी हजारों लोग ऐसे हैं जो गैस के दुष्‍प्रभावों के कारण नारकीय जीवन जीने को विवश हैं.

आंकड़ों की बात करने का अब कोई औचित्‍य नहीं है. लेकिन आइए आज फिर देखते हैं मौत के उस खेल से जुड़े कुछ वीभत्‍स आंकड़े. ग्रीनपीस के आंकड़े कहते हैं करीब 8 हजार लोग तभी मारे गए थे. उसके बाद से अब तक करीब 25 हजार से ज्‍यादा मौतें हो चुकी हैं. हर माह 10 से 15 लोग आज भी गैस के दुष्‍प्रभावों से उपजी विकृतियों का शिकार होकर मौत के मुंह में चले जाते हैं. करीब 5 लाख लोग गैस के दुष्‍प्रभावों का शिकार किसी न किसी रूप में हुए थे. करीब 1.5 लाख बच्‍चे गैस से प्रभावित माता पिता की संतानों के रूप में जन्‍म लेने के बाद स्‍थाई यप से स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी समस्‍याओं का सामना कर रहे हैं.

गैस पीडितों को मुआवजा बंट गया, वारैन एंडरसन आज भी स्‍वतंत्र घूम रहा है और भोपाल इस जघन्‍य त्रासदी की रुला देने वाली दु:स्‍मृतियों को बोझ अपने सीने पर ढोने को वि‍वश है. लेकिन सबसे अहम् सवाल यह है कि हमने इस त्रासदी से क्‍या सीखा? क्‍या हमने ऐसी दुर्घटना फिर कभी ना हो, यह सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रयास किए ? जवाब बहुत खराब है..... नहीं.

औद्योगिकीकरण की अंधी रफ्तार अब और तेज हो चुकी है और यह गारंटी कोई नहीं दे सकता कि ऐसा फिर नहीं होगा. यूनियन कार्बाइड की बंद पड़ी उस मानवभक्षी फैक्‍ट्री के खंडहरों में अब भी जहरीले रसायन पड़े हैं, जिन्‍हें हटाने को लेकर यदा कदा आवाज उठती है लेकिन राजनीति शुरू हो जाती है और कुछ नहीं हो पाता.

यदि हम ऐसी घटनाओं से सबक नहीं सीख सकते तो कुछ भी हमारी चेतना को जाग्रत करने में सक्षम नहीं है. पर्यावरण का विनाश अंतत: मानवीय जीवन के विनाश का कारण साबित होगा. भोपाल की जगह कोई और शहर होगा, यूनियन कार्बाइड की जगह कोई और कंपनी होगी लेकिन मरेंगे वहां भी इंसान ही. बस उनके नाम बदल जाएंगे. प्रकृति का आर्तनाद् सुनिए, यह पर्यानाद् है.... अपने बच्‍चों की खातिर, अपनी खातिर पर्यावरण का विनाश रोकिए.

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