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बुधवार, 28 नवंबर 2007

तो डूब जाएंगे कोलकाता जैसे शहर

निकट भविष्य में समुद्र के जलस्तर कई मीटर बढ़ने से कोलकाता, ढाका और शंघाई जैसे कई एशियाई शहरों को खतरा होगा. इस भावी संकट से निपटने के लिए सभी देशों की सरकारों को फौरन प्रयास करने होंगे. 1961 से 1993 तक समुद्र का जल स्तर 1.8 मिलीमीटर सालाना की दर से बढ़ रहा था लेकिन पिछले चौदह वर्ष से इसकी रफ्तार 3.1 मिलीमीटर प्रति वर्ष हो गई है.

इस खतरनाक वृद्धि की वजह उत्तरी ध्रुव पर बर्फ की चादर का लगातार पतला होना है. इससे कोलकाता, ढाका और शंघाई जैसे तटीय नगरों को सबसे ज्‍यादा मुश्किलें होंगी. इसी कारण यह सदी खत्म होते-होते मछलियों की बीस से तीस फीसदी प्रजातियां खत्म हो सकती हैं. बढ़ते तापमान का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा.

विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक ग्लोबल जीडीपी तीन प्रतिशत तक कम हो सकती है. लेकिन इससे भी बड़ा नुकसान कृषि और वनस्पतियों का होना है. अफ्रीका की कई फसलों के लिए पानी की उपलब्धता आज से आधी होगी जबकि एशिया के तटीय नगरों में जहां डूब वाले क्षेत्र बढ़ेंगे, वहीं पीने का पानी बहुत कम मिलेगा.

इन हालात से निपटने के लिए पर्यावरण क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित संस्था 'इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज' के अध्यक्ष डा. आर के पचौरी ने कुछ उपाय सुझाए हैं. उनका कहना है कि आगामी तीन दिसंबर से बाली में होने वाले विश्व पर्यावरण सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव और पूर्व अमेरिकी उप राष्ट्रपति अल गोर के मौजूद रहने से इन मुद्दों की गंभीरता बढ़ेगी. तकनीकी तौर पर पर्यावरण के मौजूदा खतरों से निपटने में हम सक्षम हैं लेकिन कोशिश फौरन करनी होगी.

डॉ पचौरी साधारण दिखने वाले उपायों पर जोर देते हैं. बकौल डा. पचौरी सार्वजनिक परिवहन के साधनों में वृद्धि सड़कों पर वाहनों की तादाद कम करेगी. लोगों को खुद भी रोज-रोज वाहन निकालने से बचना होगा. मकानों का नक्शा ऐसा बनाना होगा जिससे एसी की जरूरत कम हो. उनका मत था कि पर्यावरण के खतरों से आम आदमी को जागरूक करके ही लड़ा जा सकता है.

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