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रविवार, 18 नवंबर 2007

मोटापे से ग्‍लोबल वार्मिंग का क्‍या संबंध?

ऐशो आराम से भरी जिंदगी जीने के लिए मशहूर अमेरिकियों में बढ़ता मोटापा अब एक बड़ी समस्‍या का रूप ले चुका है और अमेरिकी स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ इससे परेशान हैं. बढ़ते मोटापे की समस्‍या के कारण कई अन्‍य बीमारियां भी फैल रही हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह महानगरीय जीवनशैली को माना जा रहा है, जिसमें रोजमर्रा की आपाधापी तो है लेकिन व्‍यायाम करने और चुस्‍त दुरुस्‍त बने रहने का कोई स्‍थान नहीं है. अमेरिकी समाज अब एक बीमार समाज बनने के खतरे से भी जूझने वाला है.

इससे चिंति‍त होकर अमेरिका में सेंटर्स फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते मोटापे के खिलाफ एक मुहिम चलाने का फैसला किया है. इस मुहिम के तहत लोगों में पैदल चलने, नियमित व्यायाम करने और मांसाहार के बदले शाकाहार अपनाने की पैरवी की जाएगी. विश्व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन यानि डब्लूएचओ की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण में आए बदलावों के चलते विश्व में सन् 2000 में 1.6 लाख लोगों की मौत हो गई थी.

अमेरिकी स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि 10 से 74 साल की उम्र के सभी अमेरिकी रोजाना आधा घंटा पैदल चलना शुरू कर दें तो वे साल भर में करीब साढ़े छह करोड़ टन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती कर सकते हैं. इतना ही नहीं, इससे हर साल 6.5 करोड़ गैलन पेट्रोल की बचत होगी और अमेरिकियों के शरीर से तीन करोड़ टन चर्बी निकल जाएगी. कहिए कैसा लगा यह जान कर? सच्‍चाई यह है कि मोटापा सारी दुनिया में एक ऐसी बीमारी का रूप ले चुका है जो बिना किसी शोर शराबे के फैलती जा रही है.

आप पूछ सकते हैं कि मोटापे और ग्‍लोबल वार्मिंग के बीच क्‍या संबंध है? संबंध है और काफी सीधा सा है. मोटापा बढ़ने की सबसे बड़ी वजह अनियंत्रित खान-पान के अलावा यह है कि हमने पैदल चलना छोड़ दिया. आधा किमी दूर भी जाना हो तो अपनी टांगों को कष्‍ट देने की जगह वाहन की चाबी घुमाते हैं. नतीजा अनावश्‍यक प्रदूषण के रूप में सामने आ रहा है, दिन रात धुआं उगलते वाहन ग्‍लोबल वार्मिंग की सबसे बड़ी वजहों में से एक है.

भारत को ही लें, कृपया यह न कहें कि यहां तो लाखों लोग भूखे पेट सोते हैं. यह कड़वा सच मैं भी जानता हूं लेकिन मोटापा हमारे यहां भी एक समस्‍या है. इसे देखने के लिए हम अपनी-अपनी कमर का नाप भी ले सकते हैं. सच्‍चाई कहीं से आयात करने की जरूरत नहीं है. बहरहाल मेरा कहना है इससे बचने के लिए कोई बहुत बड़ा हिमालय पर्वत उठाने जैसा काम भी नहीं करना है. बस अपनी जीवन शैली में जरा सा सुधार करना होगा. शुरुआत में इसे कुछ इस तरह किया जा सकता है.

मान लीजिए कि आप घर के पास स्थित बाजार में शॉपिंग के लिए जा रहे हैं, तो अपनी कार या मोटर साइकल स्टार्ट करने के बजाए पैदल जाएं. इससे पर्यावरण प्रदूषण तो कम होगा ही, साथ ही साथ मोटापा भी नियंत्रित रहेगा. पैदल चल कर आप जो थोड़ा बहुत पसीना बहाएंगे वह आपकी अतिरिक्‍त कैलॉरीज़ की मात्रा को कम करने में मददगार होगा. तो कैसा है यह छोटा सा उपाय? सोच कर देखें!! धरती के लिए न सही अपने लिए ही कीजिए.

5 टिप्‍पणियां :

Batangad ने कहा…

पहली बार में इस चिट्ठे पर आया बढ़िया लगा। हम जैसे राजनीति और दूसरे विषयों पर लिखने वाले तो बहुत लोग हैं। पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरुक करने वाला ये अनोखा ब्लॉग है। लेकिन, आपकी सलाह अब अमेरिकी तो मानने से रहे। कोशिश करिए कि हम भारतीयों को आने वाले दिनों में अमेरिकियों जैसी सलाह न मिले। शुभ कामनाएं।
अगर अपने प्रोफाइल में मेल आईडी डालदें तो अच्छा रहेगा।

मीनाक्षी ने कहा…

बहुत सच बात कही आपने... नुक्सान जो होना था वह अरब देश मे रह कर हो गया .. अब कुछ कुछ लोग वहाँ भी जागरुक हो रहे हैं और बुरके में ही कुछ औरते सैर के लिए निकलने लगी हैं.

पर्यानाद ने कहा…

@ हर्षवर्धन...
शुक्रिया हर्षवर्धन जी, कई अन्‍य साथियों ने ईमेल आईडी देने का सुझाव दिया है. मैने आपकी बात मान ली है, जब भी चाहें मेल कर सकते हैं.

@ मीनाक्षी ...
पर्यानाद् पर पधारने का शुक्रिया मीनाक्षी.

Sagar Chand Nahar ने कहा…

जब शिर्षक पढ़ा तो अजीब सा लगा, भला मोटापे और ग्लोबल वार्मिंघ का आपस में क्या संबन्ध परन्तु पूरा लेख पढ़ने के बाद लगा कि आपने बहुत सही कहा।
मैं ज्यादातर पैदल ही चलना पसन्द करता हूँ , कई बार दो एकाद कि मी तक जाना हो तो पैदल ही चला जाता हूँ।

ghughutibasuti ने कहा…

बिल्कुल सही कह रहे हैं आप ।
सुन्दर कविता !

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